लेखनी कविता -जिससे कुछ चौंक पड़ें - फ़िराक़ गोरखपुरी

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जिससे कुछ चौंक पड़ें / फ़िराक़ गोरखपुरी जिससे कुछ चौंक पड़ें सोई हुई तकदीरें. आज होता है उन आँखों का इशारा भी कहाँ ! मैं ये कहता हूँ कि अफ़लाक से ...

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